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Rashmi Sthapak

Classics

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Rashmi Sthapak

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दोहा-दरबार

दोहा-दरबार

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बे-मानी है ज़िंदगी,

बिन अपनों के संग।

हीरे-मोती से नहीं,

सजते मन के रंग।।


गिनती की साँसें मिली,

बात पते की जान।

झूठा-झूठा छोड़ दे,

मनवा तू अभिमान।।


मंगल-मंगल हो नया,

सुखद-सुहाना वर्ष।

हर्षित है जड़-चेतना,

जीव-जीव उत्कर्ष।।


फूलों जैसे खिल गये,

सूखे-सूखे रंग।

नए बरस के गीत हम,

गाएँगे सब संग।।


ले आई ठंडी हवा,

खिलते हुये गुलाब।

नये बरस ने खोल दी,

रंगो भरी किताब।।


आ-बैठी मुंडेर पर,

नये बरस की धूप।

आशाओं ने रच लिये,

रंग-बिरंगे रूप।।


धूप-छाँव आँसू-खुशी,

जीवन की ये रीत।

दुर्दिन में जो थाम ले,

असल वही है मीत।।


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