दोहा-दरबार
दोहा-दरबार
बे-मानी है ज़िंदगी,
बिन अपनों के संग।
हीरे-मोती से नहीं,
सजते मन के रंग।।
गिनती की साँसें मिली,
बात पते की जान।
झूठा-झूठा छोड़ दे,
मनवा तू अभिमान।।
मंगल-मंगल हो नया,
सुखद-सुहाना वर्ष।
हर्षित है जड़-चेतना,
जीव-जीव उत्कर्ष।।
फूलों जैसे खिल गये,
सूखे-सूखे रंग।
नए बरस के गीत हम,
गाएँगे सब संग।।
ले आई ठंडी हवा,
खिलते हुये गुलाब।
नये बरस ने खोल दी,
रंगो भरी किताब।।
आ-बैठी मुंडेर पर,
नये बरस की धूप।
आशाओं ने रच लिये,
रंग-बिरंगे रूप।।
धूप-छाँव आँसू-खुशी,
जीवन की ये रीत।
दुर्दिन में जो थाम ले,
असल वही है मीत।।
