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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Classics Inspirational

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Classics Inspirational

नयी उम्मीद

नयी उम्मीद

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नई उम्मीद बुझते जीवन की होती अद्भुत है देखो आस ।

हर सुबह उगता सूरज ,स्वर्णिम आयाम का देता आभास।


जीने की चाह उम्मीद है रोशनी की एक नन्हीं सी किरण।

देखते ही निराशा की कालिमा , हो जाती द्रुतगति हिरण। 


उम्मीद है अगर तो हारा दांव भी तू जीत जाएगा।

दामन थाम आस का एवरेस्ट भी फतह कर जाएगा।


उम्मीद पर टिकी होती है बुलंद सपनों की मीनारें।

उम्मीद के पंखों से सजा,ख्वाबों की रंगीन दरों-दीवारें।


इंसान के सो जाने पर भी, उम्मीद जाग देती है पहरा।

घबरा मत नादान आखिर कितनी दूर तक होगा घना कोहरा।


नई उम्मीद की चिंगारी ,कर रोशन भेदित आसमां कर देती है।

मुरझाये चेहरों का बन सहारा, बंजर में गुल खिला देती है।


उम्मीद का दिया बुझने न देना मेरे यारों हौसला बनाये रखना।

प्रभु कृपा संबलसे, मझधार में डूबती नैया बचाये रखना।


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