समर्पित नव वर्ष को
समर्पित नव वर्ष को
नयन में चंचला दीप्ति है
बाँहों में बीजल धनु मण्डित
केयूर स्थिरता चरण में
उर में श्रद्धा अखंडित।
प्राणों में जलती ज्वालामुखी
ड़मरु-मध्य हथेली पर सँभाले
जा रहा है जो संभाग
ध्वजस्तंभ को गगन में उछाले।
सुदर्शन विजय उद्घोष कर
युग निर्माण में अभिनव बढ़ा है
युधान को ललकारता जो
शिखर शैलाधिराज पर चढ़ा है।
दर्प भी कन्दर्प का
मुख कांति का देख मर्दित
देश के उस ज्वान को
मेरी काव्य संजीवनी समर्पित।
