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Nirupa Kumari

Abstract Tragedy Classics

4  

Nirupa Kumari

Abstract Tragedy Classics

समय का रथ

समय का रथ

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कहीं किसी रोज़ यूँ भी होता...

समय के रथ को उल्टा घुमा पाते

पापा, आपको हाले दिल सुना पाते

आप क्या हो हमारे लिए बता पाते

जी भर के आप पे प्यार लूटा पाते


कितनी बातें रह गई सुनने सुनाने को

अब बस यादें ही है रुलाने को

काश कोई डाकिया होता आप तक पैग़ाम पहुंचाने को

मन के सब गुबार धो लेते

आपसे लिपट के जी भर रो लेते

समय पे अगर वश चलता

तो क्या ऐसे ही आपको खो देते..???


पर यक़ीन है मुझको कहीं न कहीं

आप हो हमेशा हमारे साथ, बनके एक अनुपम अहसास

माना कि देते नहीं अब हमें आवाज़ 

बढ़ाते नहीं हमारी तरफ अपना प्यार भरा हाथ

पर होते हैं सदा दिल में उम्मीद बनके


अंधेरों में राह दिखाते हैं बनके आप ही प्रकाश

आप हो आपकी सीख में, संस्कार में, प्यार में,व्यवहार में

मेरी आत्मा में,मेरे शरीर की हर कोशिका में

मेरे नैनों में,मन मष्तिस्क में,रक्त में,अश्रु में, हँसी में

आप हो पूरी तरह से अब भी मेरी ज़िंदगी में


कहीं किसी रोज़ फिर मिलेंगे हम ज़रूर

अहसास से बंधे हैं हम, हो नहीं सकते कभी भी दूर

जन्म मरण के परे हैं,आत्मा से हम जुड़े हैं

मिलना बिछड़ना तो बस समय से बंधे सिलसिले हैं

कहने की बात है बस पर सच में कहां हम बिछड़े हैं।


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