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Dinesh Dubey

Abstract

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Dinesh Dubey

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अकेलापन

अकेलापन

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सालता रहता है हर पल,

ये मेरा अकेलापन,

रहता हूं भीड़ में फिर भी,

तन्हा सा घूमता हूं।


ना जाने किसकी खोज में,

अब तक अकेला पड़ा हूं,

सहता हूँ ये सूनापन,

शोर के इस बाज़ार में भी।


सब कुछ है जीवन में,

इस अकेलेपन को छोड़,

बहुत करता हूँ मैं कोशिश,

अकेलेपन को नहीं पाता छोड़।



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