मायका
मायका
चुटकी भर सिंदूर से छुटकी आज पराई हो गई,
सात फेरों से घर अपना मायका कहलाई।।
सखी सहेलियाँ, वो बचपन, नादानियां छुट रही है,
डोली में बैठ आज लाडो की आँखें भर आई है।।
माँ का आंचल, पिता का प्यार कहीं खो सा गया,
भाई बहन की वो लड़ाइयाँ बस यादें बन गया।।
स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ रह गईं यादों में समेटे हुए,
ससुराल लौटने की दिन गिन रही बेटी मायके जाते हुए ।।
याद अति है बेटी को माँ के हाथों का खाना,
पापा के गोदी में खेलना, मिट्टी से घर बनाना।।
फूल बनके खिली थी जिस प्यारी सी आँगन में,
तितली बन उड़ी थी जिस छोटी सी बगिया में।।
वो बगिया अब बगिया नहीं मायके कहलाती है,
बेटी अब घर नहीं जाती मायके जाती है।।
इतराती खिलखिलाती बिटिया अभी फ़र्ज़ निभाती है,
लाडो अब घर नहीं जाती मायके जाती है।।