माँ
माँ
क्या लिखूँ मैं माँ के बारे में ?
कैसे लिखूँ मैं माँ के बारे में ?
ममतामयी माँ के बारे में लिखूँ तो शब्द कम पड़ जाते हैं ,
माँ की प्यारी सूरत बनाने बैठूँ तो रंग कम पड़ जाते हैं ।।
वो कौन सृष्टिकार है जिसने माँ को बनाया ,
हर जगह ख़ुद के बदले माँ को बसाया ।।
महिमा लिखूँ , करुणा लिखूँ या माँ का दुलार लिखूँ ,
डांट लिखूँ , स्नेह लिखूँ या माँ के छड़ी की मार लिखूँ ।।
मेरी माँ ,
वो फूल है जिसे ईश्वर ने बड़े स्नेह से खिलाया है ,
दुनिया में ला कर माँ ने संतान को अमृत पिलाया है ।।
माँ के कदमों में झुके सारी कायनात ,
गोदी में जो सुकूँ मिले जन्नत में कहाँ वो बात ।।
माँ के आँचल के छाँव में शीतलता का अनुभव हुआ ,
माँ की मिठी वाणी से इस जहाँ से मेरी परिचय हुआ ।।
जब जब दर्द से तड़पी हूँ , रोई हूँ , कराही हूँ ,
माँ के स्नेह भरी स्पर्श से सहसा स्वस्थ हुई हूँ ।।
माँ जब भी मुझ को डांटती थी , अंदर ही अंदर रोती थी ,
मेरी भलाई , मंगल हेतु , दिल पर पत्थर रखती थी ।।
सारे दुखों को खुद में समेटे , गमों को अपने सीने से लगा के ,
अश्कों को पी जाती थी , माँ पीड़ा में भी मुस्कुरा देती थी ।।
माँ दर्द के बदले खुशियां बांटती थी ,
मेरी माँ संघर्ष की मूरत थी ।।