कंधे पर भारी बस्ता है
कंधे पर भारी बस्ता है
कंधे पर भारी बस्ता है,
बच्चें तो एक गुलदस्ता हैं।।
किताबों के बोझ तले दबे जा रहे,
इन में उनकी मुस्कान कहीं खोई जा रही।।
ना छुट्टियों का पता, ना रिश्तों की खबर,
मासूम बच्चे अब बन गए हैं लाचार।।
नानी के घर जाना कब के भूल चुके हैं,
छुट्टियों में बैठ कर बस होमवर्क करते हैं।।
दादी से कहानी सुनने का वक़्त नहीं रहा,
दादा जी के संग मस्ती करें ऐसा आलम अब कहाँ।।
बच्चे विचारे पढाई के मारे,
पढाई के नाम पर स्कूलों के नखरे।।
अव्वल आना है किसी भी कीमत पर,
ज़रा सी जो नंबर कम हो टूट पड़ता है पूरा घर।।
बच्चे हैं, कलियाँ हैं, इन्हें खिलने दो ज़रा,
पढ़ लिख लेंगे आगे, अभी खेलने दो ज़रा।।
दोस्त जाने, रिश्ते जाने, जाने नैनीहाल,
मुस्कुराने दो इन्हें, ये कर देंगे कमाल।।
बचपन इन को लौटा दो, किताबें कर दो आधा,
कंधे उन के सीधे होंगे, तो पार कर जाएंगे हर बाधा।।