रावण के प्रश्न
रावण के प्रश्न
आज जब रावण दहन को मैने शस्त्र उठाये तो
बड़ी ज़ोर से रावण ठठा के मुझ पर हंसा
बोला सदियों से तुम मुझे मारते आ रहे हो
पर क्या कभी मुझे मार पाओगे विराजमान
हूँ मैं तुम्हारे हर कण कण में
लयबद्ध हूँ तुम्हारी हर आती जाती श्वास में
जीवित हूँ तुम्हारी हर अपूर्ण इच्छा में
पोषित हूँ तुम्हारे अहंकार से
आकार पाता हूँ तुम्हारे लोभ से
बल पाता हूँ तुम्हारे क्रोध से
क्या तुम अपनी कमियों से कभी लड़ पाओगे
क्या अपने श्वासों को तज पाओगे
क्या अपनी इच्छाओं को त्याग कर योगी बन पाओगे
आज मानव ही मानव का घोर शत्रु है
हर संबंध लोभ की डोर से बंधा हुआ है
कहीं न कही स्वार्थ हर रिश्ते से जुड़ा हुआ है
पाप कलयुग में मेरे युग से भी कहीं अधिक पल्लवित है
जननी मेरे युग से भी अधिक असुरक्षित है
सम्मान को तरसती हर अबला है
आज न राम कहीं हैं न ही लक्ष्मण कहीं हैं
बोलो , जो अपने अंदर से मुझे मार सके
ऐसा अमोघ बाण कहां से लाओगे
रावण के प्रश्नों का कोई उत्तर मेरे पास न था
सच में रावण हर युग में विद्यमान था, है और सदा रहेगा।
