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खाक होना

खाक होना

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ऋतु, रंग, राग समय का है,

अभिमान तो तू ना कर जरा। 


ये जरा ही है, कि तू रुक जरा, 

सब सोच ले और झुक जरा। 


कदम बढ़े तो तू बढ़ जरा,

कदम रुके तो तू रुक जरा, 


ऋतु,रंग,राग समय का है,

अभिमान तो तू ना कर जरा। 


ये जरा-मरण की ही बात है,

मिट्टी मिला, तू खाक है। 


ऋतु, रंग, राग समय का है,

अभिमान तो तू ना कर जरा। 


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More hindi poem from Dr Abhishek Kumar Srivastava(अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं में विश्वास, पूर्वजों के मान-सम्मान के दृष्टीकोण से कार्यों का संपादन,जयप्रकाश नारायण जी एवं गुरुदेव टैगोर जी को मार्गदर्शक मानना। )

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