बोलती कलम
बोलती कलम
बोलती कलम
मेरी कलम.....
मेरी सखी , मेरी दोस्त भी है
मेरा साथ ये नहीं छोड़ती है
खुश रहूं या रहूं दुःखी
बोलती है मुझसे ये मेरी बातें सभी
ना डरती है ना थमती है
मेरी कलम सच में बहुत बोलती है
दिल पर जो छाले हैं
सब मेरी कलम ने लिख डाले हैं
ये शब्दों से खेलती है
मन के भावों को टटोलती है
मुंह पे चाहे पड़े हों ताले
ये सब राज़ दिलों के खोलती है
मेरी कलम बहुत ,बहुत बोलती है
इससे मिलने की उत्सुकता मुझे भी रोज रहती है
हर रोज सोचती हूं कि देखूं, आज कलम क्या कहती है
उसके साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है
उससे मेरा रिश्ता बहुत गहरा लगता है
मेरी हर सोच को ये कागज़ पे उड़ेलती है
मेरी कलम मुझसे ज्यादा बोलती है।