सबकुछ अब भी यहाँ है
सबकुछ अब भी यहाँ है
अंधेरों में रोशनी लिए फिरते हो
पानी के रास्ते बिना भीगे ही निकलते हो
जाना है क्षितिज तक शायद तुमको
जमीं पे रहकर आसमान को मापने यूं निकलते हो..!
ये वादियां ये फिजाएं,ये गोधूली शाम और ये हवाएं
इन सबने महसूस किया है तुमको
क्या तुम भी इनकी रूहानियत महसूस करते हो..?
लगता है जैसे अभी कल ही बात हो
हाथों में हाथ लिए इस तरह गाते चलते थे हम
जैसे सारा जहां हमारे साथ हो
उन गीतों को गुनगुनाती हैं अब भी ये फिजाएं
उनको उम्मीद होगी शायद कि कल हम दोबारा साथ हों
कहने को तो वो पल वो कल बीत गया है
पर जो बीता था वो सच में बीता कहां है
कल जमीं पर था आज यादों में बसा है
ना होकर भी जाने क्यूं सबकुछ यहां है
जो पुराना था वो जैसे अब भी नया है।