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Nirupa Kumari

Abstract Classics

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Nirupa Kumari

Abstract Classics

पहचान

पहचान

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पहचान की तलाश में ....

परेशान है हर इंसान

खोजने खुद की पहचान

तय करता है वो कितने फासले

एक कर देता है धरती आसमान


पर इस पहचान का आधार क्या है आखिर

तुम किसके अपने हो...

या कौन है तुम्हारा अपना...

या कितना हद तक साकार किया है तुमने अपना सपना....

भरी है कितनी उड़ान...

तय करना है तुम्हें और कितना आसमान....


कौन है तुम्हारा हमसफ़र,

या तुम बने हो कितनो के

मंज़िल की डगर.....

किसका अरमान पल रहा है तेरे दिल में....

बाक़ी है अभी कहां तक ये सफर...


देखो तो कितने सहारे चाहिए

कितने बहाने चाहिए

समझाने को अपनी पहचान


मेरी पहचान क्या या कौन तय करेगा

मेरे सपने,मेरा अरमान

मेरी उड़ान या मेरा संसार

मेरी काबिलियत या मेरा व्यवहार

मेरी कमाई,या मेरी तन्हाई

कौन हूं मैं...


क्या इन्हीं पैमानों की परछाई ... 

कितना आश्रित है ये,कितना परावलंबी...

क्या इसी को पाने का है सबका अरमान...


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