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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics

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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Classics

पाने को इक नजर

पाने को इक नजर

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गुजरा कई बार तेरे दर से

पाने को इक नजर प्रीतिकर

न दिखी तुम और तुम्हारी छवि 

खोजती रही हर अधखुली किंवार। 


दर्द सी उठती है गिरती बिजली

जागती नस – नस में आग है

हर पल तृषित हृदय जलाऊँ

उर का कैसा अनुराग है। 

दहकती ज्वाला शायद बुझा दे, प्रिय का मनभावन मनुहार।। 


माधुर्य सुधामय सौंदर्य सलोना

बिकसे सुरभित सुमन सुगंध सा

उन्मुक्त-निर्द्वंद यौवन चढ़ी नदी सा

डूबे – उतराये मन तटबंध सा। 

मुझको पार लगा दे प्रियतमे!, आलिंगन के गलेहार।। 


हेर सुनी व्याकुल हृदय की

आहट सुन लो कदमों की

लौटा लाती है पौ मेरी

रहगुजर तेरे गाँवों की। 

गुजरा कई बार तेरे दर से, पाने को इक नजर प्रीतिकर।। 


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