कभी-कभी ऐसा भी होता है
कभी-कभी ऐसा भी होता है
कभी-कभी दिल्लगी में ऐसा भी होता है कि
इश्क़ के तरकश के निकले
दीवानगी के कुछ बेकाबू तीखे वाण
भटककर अपने लक्ष्य से, चूक जाते हैं निशाना
किसी बेगुनाह को घायल करके
फिर मनाते हैं जश्न, शायद नहीं मालूम उनको
जिस दिल को बनाया निशाना
वो तो कभी चाहत थी ही नहीं और
जो चाहत बसी थी दिल में, वहाँ कोई और
दिल्लगी करके बाजी मार ले गया
इतनी आसान नहीं होती डगर मोहब्बत की
काश! अगर ऐसा होता तो फिर
हर दीवाने का इश्क़ मुकम्मल होता यहाँ
वफ़ा करके भी यहाँ
बेवफाई की गुंजाइश खड़ी रहती है
भौंह ताने हर पल
कभी इस डाल पर, कभी उस डाल पर
दिल्लगी के इस जटिल खेल में
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि
निशाना जिस दिल को लगा
वो हमारी चाहत तो थी, मगर जिसको लगा
शायद हम उसकी चाहत न थे और
लौटा देती है उस तीर को
कुछ दर्द, कुछ गहरे जख्मों से सजाकर
अनजाने में जिससे दिल लगा बैठे थे
वहाँ कोई और चुपके से निशाना लगा गया
फिर दिल में क़ैद करके पंछी को
उड़ा कर ले गया आसमान के उस पार
शायद ये चाहत उसी दीवाने की अमानत थी

