भावना की खोज
भावना की खोज


मन की रीत मनी जाने; समझ ना पाए कोई,
हर मन एक सोच ना राखें जो मन चाहे हो।
मन की भावनाएं; तन की भावना,
नाम हजारों होय।
श्री कृष्ण देख मन भावे ना,
गोपियं मन मायाजाल में।
ना खेलो केहो संग; मन रो, जब कोई सुनावई,
भूल ना केहो होए।
सांस बिना ना जीवन हैं; भावना बिन ना मन,
ज्योति बिना प्रकाश ना पानी बिन ना सृष्टि।
हर कोई एक निर्भर पात,
जैसे ईश्वर बिन ना कोई।
हर मन की एक भावना; मन को समझे होई,
भावना बिना कुछ समझे क्योंकि मन की बातें समझाई।
शामस बोले ना समझे कोई
आपस में ही बोल छोई।
प्राणी की बोल प्राणी ही समझे,
मनुष्य समझ ना सके हुई।
काहे रे यह जीवन जगो; जब ताको समझो ना कोई,
जीवन जगने का होई जब थारा जीवन व्यर्थ।
प्रेम समझे भावना सा,
हरमन भावना घेरे।
माया सी यह नगरी है,
इसमें समझ सको तो समझो।
माया सी नगरी भावना में डूबी,
मनुष्य का मन ही चंचल।
साथ न समझे आत ना समझे,
बात समझे ना कोई।
समझे सिरफ वह देखन होई।
उलझन में हैं वह सब लोग,
जो ना समझे अपने भाव।
पहले समझो खुद को,
फिर बाकियों को समझाओ।
यही भावना सिखलाई,
खुद को पहले पहचानो,
फिर बाकियों को समझो।
छुपी हुई है सृष्टि में शब्द अनोखे हैं,
उनमें से ही एक शब्द भावना का है।
कुछ के अच्छे, कुछ के सच्चे,
कुछ के बुरे, कुछ कह सीधे,
हरमन सोचे अलग भावना।
सूर्य की भावना प्रकाश,
चंद्र की भावना शीतल।
पानी की भावना जल में है,
वायु की भावना ठंड में।
पृथ्वी की भावना जीवन में,
जीवन छुपा ब्रह्मांड।
कहां खोजो उस शब्द को,
गली गली में घूम।
भावना वह शब्द जो मनुष्य के मन में आता है जिसके बिना मनुष्य अपने आपको नहीं पहचान सकता क्योंकि वही है जो हमारे मन में क्या है क्या सामने वाले का क्या सोच विचार होता है हमारे प्रति वह समझाने के लिए होता है।