माता-पिता
माता-पिता
यह वह शब्द है वह बाण है,
जिसे हमने पहले ताना है।
मां यह शब्द मेरा है,
मेरी जुबान से जन्म का पहला शब्द मां बना।
जन्म लेते ही जो शब्द मेरे मुख से वह निकला था,
आवाज रोने की तरह मां शब्द को मैं बुलाना है।
मां वह होती है,
जो बिन बोले सब कुछ समझ लेती है।
आंख खुले तो सामने पावे ,
सोते वक्त लोरी सुनाती।
दुनिया की सारी खुशियां दे जाती,
पर खुद के लिए ना कुछ रखती।
ईश्वर से एक ही दुआ मनाएं हम,
हर जन्म में इसी मां की झोली पाए हम।
जो हमारी खुशियों के लिए लड़ जाती दुनिया से,
वह मां खुशी खुद की ना देखें इस दुनिया में।
जिसको ईश्वर ने भी स्थान दिया है सबसे ऊंचा,
फर्ज हमारा बनता है सम्मान उसका हम करें।
जिसने हमें यह दुनिया देखने का अवसर दिया है,
मैं हर पर्वत हर मंदिर जाकर माथा टेक दुआ मांगूँ हर जन्म पाऊँ उसे हर जन्म मां सलामत रहे।
मेरी दुनिया में मेरी मां से बड़ा ना कोई,
हर चीज उसके सामने मेरे लिए छोटी हुई।
यह दुनिया एक माया है समझ में आया मुझको,
लोभ मोह में फंस के हम अपनी दुनिया खो देते हैं।
जिसका हम सम्मान करें वह हम पर अभिमान करें,
जब जब हम कोई कार्य करें तब तक उनका ध्यान धरे।
तेरे ध्यान जब मां का,
सारी दुनिया तक करें सम्मान न हमारा।
ईश्वर के रूप में धरती पर बने दो लोग।
मां वह है जो ईश्वर का एक रूप कहलाए।
मां हमें इस दुनिया में लाती,
तो पिता हमें दुनिया दिखलाता।
मात पिता के बिना ना चले,
यह दुनिया में कोई।
शाम सवेरे जपते हम जिनके नाम की माला,
वह ईश्वर स्वयं मात-पिता के अधीन होए।
समस्त सृष्टि की शुरुआत हुई यह दो शब्द से,
क्योंकि उनके चरणों से बड़ा कोई पवित्र स्थान नहीं।
मेरी दुनिया शुरू है इन दोनों से,
काहे मैं पड़ो इस मायाजाल में ।
सेवा करूं जब इनकी मैं सब सब कुछ मैं पाऊं,
दिल से माना खुशी मिले यह सब को समझाऊं।
सेवा इस धरती में,
आशा उन से शुरू है।
धरती से भारी मां होती है,
आकाश से बड़ा पिता।
वैसे ही आजीवन के,
दो पहलू होते हैं।
मां यशोदा कृष्ण की,
कौशल्या श्री राम।
नंद के कान्हा है,
राम दशरथ की प्राण।
सब कुछ इनसे ही शुरू,
तो क्यों भटके संसार में।
मां होती है सबसे प्यारी,
पिता शिष्टाचार में।
ना दिखला दे अपना प्रेम पर करते हैं सबसे ज्यादा,
इन दोनों को समझ ना सके क्योंकि यह होते हैं माता-पिता।
सृष्टि की शुरुआत की है,
अंत इन्हीं में है छुपा।
सांस है मां तो,
आस पिता।
मात पिता की सेवा से,
हो जाए भगवान भी खुश।
पुष्प है मां, तो वृक्ष पिता।
सुबह है उनसे, शाम भी उनसे।
समुद्र से भी गहरा प्रेम है मां का,
कांटे पर भी चलना सिखा दे हमको पिता।
क्योंकि पूरी सृष्टि इनसे ही है,
इन बिना ना कुछ।
यह वह दो शब्द है जिनसे हमारी दुनिया की शुरुआत होती है , इन दोनों के सिवा ना कोई दुनिया कभी देख सकता है ना कोई इस दुनिया में आ सकता है। इन्हीं के चरणों में स्वर्ग छुपा है।
