जीवन
जीवन
छाजू चढ़ा पहाड़ पर मरने के वास्ते
ज़िन्दगी की कठिन डगर के ऊबड़खाबड़ सवाल चीख रहे थे कान के रास्ते
जैसे भगवान की नज़रों से हो गया था ओझल,
सुख -चैन -शांति गई सब ठन्डे बस्ते,
पहुंच चोटी पर, बढ़ाने चला था जब आखरी कदम,
सुना किसी को मस्त घुमते धूम मचाते,पलटा देखा
आया सवाल मन में की कैसी है ये पक्षपाती उस परवरदिगारे की,
किसी को कोमल हंसी,किसी को खून के आंसू रुलाते,यह कैसी माया जगदीश्वर की
भरकर खिन्नता में बूँद पांच ओर खिन्न,
कमज़ोरी अपनी हीनता का कटोरा अभी फोड़ ही रहा था मत्थे उस परमात्मा के
तभी देखा, आता एक हाथ कंधे परअपने,
लगा जैसे किसी ने मलहम लगाया हो सालों के दुखते घाव हरे-सुनहरे
आँखों में चमक,होंठों पर मुस्कान, चेहरे पर लाली लिए
कहाँ से आया यह अजनबी सा हमजोल।
मिला हृदय,लगाया गले, पोंछ आँसू,सँवारे बिखरे गेसू,
बांटा दुखदर्द बोले 'मत घबराओ मैं हूँ तुम्हारा वासु '
ये मुश्किलें, ये कठिनाइयां,ये ज़िन्दगी की बाधा,
लगती हैं जैसे स्याह बादलों से घिरा अँधेरे में अकेला,
नहाता मासूम मानसपटल अंधी तेज़ाब की वर्षा में
'सब जानता हूँ,समझता हूँ मैं, क्यूंकि रचयिता हूँ, सृजनकर्ता हूँ मैं,पर
तेरा यह रूप बनता है,निखरता है स्वरुप, इन्ही जटिल, दिक्कतों भरी वेदना में,
फिर क्यों बैठा है इंतज़ार में किसी की संवेदना में,
यह संकट की घड़ियाँ नहीं है कोई बेड़ियाँ, बल्कि
इन असुविधाओं की अनुपस्तिथि में तू,
तू न होकर किसी की हो जाएगा मृगतृष्णा, तू अँधेरे को चीरता जुगनू
इन्ही विकटताओं, इन्ही कांटो में ही तो खिलता है कमल
यूं हो तो यह दिल धड़कता है, चलता है जीवन ।
