मजबूर मजदूर
मजबूर मजदूर
कांधे पे लादे गठरी कुछ दो चार,अपने संग लिए भूखे परिवार।आज बंदी से होकर के मजबूर, चला देखो वो मजदूर...
फटे टुकड़े में बांध चार बर्तन,करने बस परिवार का पोषण,सड़क पे फैलाए अपने आवास,धड़कते हृदय में लिए बस इक आश।आज बंदी से होकर के मजबूर,चला देखो वो मजदूर...
डरा है जग, फैली है बिमारी।किंतु चल पड़े ये, है इनकी लाचारी।बढ़ चले पैदल ही कोई मोटर है ना गाड़ी।इसने देखी है बस भूख की महामारी।आज बंदी से होकर के मजबूर,चला देखो वो मजदूर...
बूढ़े मां, बाप के छूट रहे हैं दम ,भार्या,बच्चों को लिए संग–संग।किए निज पर विश्वास वो हरदम,आज बंदी से होकर के मजबूर,चला देखो वो मजदूर....
किए भवनों के कई निर्माण, दिए सुंदर उन्हें आकार।भरे खड्डे ,बनाईं राहें कई थीं जो अबतक बेकार।पर कर ना सका अपने सपनों को वो साकार ,रह गए उसके वही टूटे फर्श,फटे छप्पर, चूती दीवार।किन्तु बिखर पड़ा उसका ये भी छोटा सा नीड़ ।आज बंदी से होकर के मजबूर,चला देखो वो मजदूर...
नहीं शिकायत , किसी से बैर , अपने संबल का बस लेकर धैर्य।बचाने अपना प्यारा परिवार ।महामारी में होकर के मजबूर, चला देखो वो मजदूर... _________© मृदुला🙏🙏मजदूर कांधे पे लादे गठरी कुछ दो चार,अपने संग लिए भूखे परिवार।आज बंदी से होकर के मजबूर, चला देखो वो मजदूर...
फटे टुकड़े में बांध चार बर्तन,करने बस परिवार का पोषण,सड़क पे फैलाए अपने आवास,धड़कते हृदय में लिए बस इक आश।आज बंदी से होकर के मजबूर,चला देखो वो मजदूर...
डरा है जग, फैली है बिमारी।किंतु चल पड़े ये, है इनकी लाचारी।बढ़ चले पैदल ही कोई मोटर है ना गाड़ी।इसने देखी है बस भूख की महामारी।आज बंदी से होकर के मजबूर,चला देखो वो मजदूर...
बूढ़े मां, बाप के छूट रहे हैं दम ,भार्या,बच्चों को लिए संग–संग।किए निज पर विश्वास वो हरदम,आज बंदी से होकर के मजबूर,चला देखो वो मजदूर....
किए भवनों के कई निर्माण, दिए सुंदर उन्हें आकार।भरे खड्डे ,बनाईं राहें कई थीं जो अबतक बेकार।पर कर ना सका अपने सपनों को वो साकार ,रह गए उसके वही टूटे फर्श,फटे छप्पर, चूती दीवार।किन्तु बिखर पड़ा उसका ये भी छोटा सा नीड़ ।आज बंदी से होकर के मजबूर,चला देखो वो मजदूर...
नहीं शिकायत , किसी से बैर , अपने संबल का बस लेकर धैर्य।बचाने अपना प्यारा परिवार ।महामारी में होकर के मजबूर, चला देखो वो मजदूर...
