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mridula kumari

Inspirational

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mridula kumari

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तिमिर

तिमिर

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मन के तम 

अंधकार से डरता था यह बालपन,

आज उसी में पाता सुकून यह मन। 


अंधकार ना ये काला रंग है,

नहीं अशुभ यह अंधकार है।

शत्रु हमारे द्वेष,पाखंड, दंभ,अनाचार है।

मिट जाए गर ये तिमिर मन से ,

हम होंगे आलोकित अंतर्मन से।

भर लो प्रकाश शिक्षा के ज्ञान से ,

अंधकार मिटाओ मनःविज्ञान से।


लोभ,मोह,काम,क्रोध के तम से जाग,

अरे!कमरे के अंधेरे जग से नहीं भाग। 


अंधेरे को ना मार सकोगे, 

यही ब्रह्म का अकाट्य सत्य है।  

अंधकार है अस्तित्व प्रकाश का,

बिन अंधकार क्या महत्व प्रकाश का।

अंधकार है व्याप्त जगत में,

कुछ पल इसे तुम छल ही सकोगे।

जलाकर ज्योति दीप,दीया की।   

बुझते ही फिर वही घोर तम ।

मिलकर फैलाएं गर ज्ञानालोक हम।

मिट जायेंगे अज्ञानता के तम ।


जो ईच्छा है गर रंग बिरंगी ,

काले नभ में चमकते तारे।

काले मन के दंभ मिटाओ,

सदाचार के आलोक जगाओ।


मां के गर्भ में पाया सुख अथाह , 

आते ही आलोक में रोया प्रथमतः।


थी शांति गर्भ के अंधकार में ,

मचा कोलाहल जग के प्रकाश में।

गर्भ के अंधकार में ही शुभ प्रकाश था, 

जग के प्रकाश में सच्चा अंधकार है।

जो फैला अज्ञानता के वशीभूत,

हम तुम, ऊंच नीच, छुआ छूत ।

 

पाओगे ज्ञान नयन बंद कर ,

घोर तम ब्रह्म में ध्यान लगा कर।

मिटेगा तिमिर जब मन के शिविर से,

आलोकित जग होगा तम के निविड़ से।

तम अपने भीतर जमा हुआ है,

दंभ बन कर वो तो अड़ा हुआ है।

मानव मानव से लड़ा पड़ा है ,

हिंसा का तीर वो ताने खड़ा है।

हम ही श्रेष्ठ कोई और नहीं है ,

अज्ञान के तम में बूड़ा हुआ है।

मिट जाओ न अहम के अन्धकार में,

जगा लो स्वयं को बंधुत्व के प्रकाश में।।

 



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