किस्सा
किस्सा
वो घाव याद आते हैं,
तो दिल में दर्द दे जाते हैं।
उन से जा के मिलना
फिर अठखेलियां करना,
उन्ही पलों में उनका
मुखौटा पहन ना।
मेरी मुस्कराहट को
उनका समझ बैठी,
उन मुलाकातों को
अनोखा समझ बैठी।
वो तो मेरे साए से भी
नफ़रत किया करते थे,
मुझको घाव देने ही तो
घर से निकलते थे।
इक शाम
जब मुझे मुखौटा दिख गया,
उनकी सारी उम्मीदों पर जैसे
उन्ही का साया पड़ गया।
जाने-अनजाने मैंने
कितने घाव लिए थे,
जाने-अनजाने वो
बहुत दूर मुझसे हुए थे।
वो घाव याद आते हैं
तो दिल में दर्द दे जाते हैं,
वो पल याद आते हैं
तो सब बिखेर जाते हैं।
काश उनसे
मुलाकात न होती,
काश! उस मुखौटे की
मैं तालाश न होती।
