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Shiveti Verma

Abstract Others

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Shiveti Verma

Abstract Others

मुखौटा

मुखौटा

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वो घाव याद आते हैं,

तो दिल में दर्द दे जाते हैं।

उन से जा के मिलना

फिर अठखेलियां करना,

उन्हीं पलों में उनका

मुखौटा पहनना।

मेरी मुस्कराहट को

उनका समझ बैठी,

उन मुलाकातों को

अनोखा समझ बैठी।

वो तो मेरे साए से भी

नफ़रत किया करते थे,

मुझको घाव देने ही तो

घर से निकलते थे।

इक शाम

जब मुझे मुखौटा दिख गया,

उनकी सारी उम्मीदों पर जैसे

उन्हीं का साया पड़ गया।

जाने-अनजाने मैंने

कितने घाव लिए थे,

जाने-अनजाने वो

बहुत दूर मुझसे हुए थे।

वो घाव याद आते हैं

तो दिल में दर्द दे जाते हैं,

वो पल याद आते हैं

तो सब बिखेर जाते हैं।

काश उनसे

मुलाकात न होती,

काश उस मुखौटे की

मैं तलाश न होती।



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