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Nitu Mathur

Tragedy

4  

Nitu Mathur

Tragedy

प्रथा

प्रथा

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प्रथा


सुंदर नटखट चंचल चिड़िया सी इक बाला

वन उपवन विचरती ओढ़े रेशमी दुशाला

घर आंगन की प्यारी वो लाड़ो राजदुलारी

मन थे सपने संजोए डोले क्यारी क्यारी


आशा उमंग सपने हज़ार देखे नयन विशाल

पढ़ लिख कर अफ़सर बनूं करूं ऐसा कमाल

की उसने मेहनत ज्ञान ध्यान बुद्धि से भरपूर 

दिया साथ अपनों ने तो बनीं सबका नाज़ गुरूर


समय बीता, हुआ विवाह , नौकरी भी छूटी

नए बंधन की डोर से जुड़ी जैसे अटकी खूंटी

नया घर नया परिवार जोश से हुआ सत्कार

कोशिश सबसे जुड़ने की मिला प्यार को प्यार


कुछ अनहोनी होने को थी जो नहीं थी अपेक्षित

पति का छूटा साथ टूटी चूड़ी, बेसुध मैं क्षत विक्षत

कुछ संभलने से पहले ही शुरु हुई प्रथा की बात

सब कुछ खत्म हो मेरा साज श्रृंगार मिटे हालात


श्वेत वस्त्र, सादा पहनावा, उतरे सब ज़ेवर श्रृंगार

 मुरझाया मन मेरा मानो खोया जीने का अधिकार

हद तब हुई जब काटने लगे मेरे लंबे केश

मैं बिलखी, रोई विनती करने लगी विशेष

ना करी ऐसा जुल्म मैं चुप हो जाऊंगी 

सादगी से रहूंगी सदा सबका कहना मानूंगी


ना सुनी मेरी व्यथा , व्यर्थ हुई सब चीख पुकार

मनमानी को प्रथा बोलकर मनवाया अहंकार

क्या कहें किससे कहें समय अभी भी रुका सा है

पढ़ा लिखा वर्ग भी इनके आगे आज झुका सा है 


नीति, नियम, कानून से ये जानें अंजान हैं

अपने बलबूते पर चला रहे सत्ता महान हैं

कठोर नियम की पालना हो घेरे में ऐसे लोग हों

नारी के स्वाभीमान को तोड़ने की को ठोस सजा हो 

बंद हो ये खिलवाड़ सारा नारी कैद से आज़ाद हो।


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