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Komal Mondhe

Tragedy Inspirational

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Komal Mondhe

Tragedy Inspirational

बलात्कार

बलात्कार

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वैसे तो बड़ा संस्कारी बनता है ये समाज

पर इसके कई संस्कार ठहरते है लड़कियों के लिए अत्याचार

एक अत्याचार है ऐसा, जिसका मेल नहीं किसी संस्कार से

फिर क्यों उंगली उठाता है समाज लड़कियों के संस्कार पे

हाँ बलात्कार है इस अत्याचार का नाम

गंदी सोच , गंदी नजर है इसकी पहचान

आखिर ये समाज कैसा है

बात है लड़की के सम्मान की पर दोषी भी उसी को ठहराता है

कहता है समाज चाल-ढाल उसकी बराबर नहीं थी

और कपड़े ऐसे पहनती नजरें तो पड़नी ही थी

फूल सी बच्ची से ले के हॉस्पिटल में अपने 

जान से जुझने वाली औरत तक

ऐसी कई लड़की , औरतों ने सहा है ये अत्याचार 

फिर भी समाज क्यों माने इन्हीं को गुनहगार 

अरे गंदी नजरें गंदी सोच है उस हैवान की

एक स्त्री के रूप में जन्म लेना ये 

गलती थी क्या उन लड़कियों की?

गुनहगार तो वह हैवान है

जिसने खेल बनाया लड़की के आबरू का

कड़ी से कड़ी शिक्षा का भागी है जीने का तो 

उसको जरा भी अधिकार नहीं है

ऐसों से बचने का समाज ने तरीका निकाला है निराला

लड़कियों को ही इसने बंधनों में बंधा डाला

हर समय बाप भाई पति का सहारा तू लेना

अकेली तो तू कहीं मत भटकना

 चारों ओर से डराकर उसे रखा

आत्मनिर्भर बनना उसे किसी ने नहीं सिखाया

अब बनना है स्त्री को खुद का ऐसा रक्षक

गंदी नजर से उसे देख ना पाए समाज का कोई भक्षक

देवी माता का अवतार कहते हैं स्त्री को

तो स्त्री मत कांपना पाप के खिलाफ उठाने से त्रिशूल को

ताकत तुझ में ऐसी है समाज के सामने तू अकेली ही काफी है

बस कर हिम्मत अपने हक के लिए लड़ने की

कतार खड़ी हो जाएंगी तेरे पीछे ऐसी करोड़ों लड़कियों की


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