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Damyanti Bhatt

Tragedy

4  

Damyanti Bhatt

Tragedy

रिश्ते

रिश्ते

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415

दिन दिन भाग रहे हैं

बहू ,बेटियां

उनका भागना भी कुछ हद तक ठीक ही है

आखिर कब तक

मुर्दा रिश्तों को ढोती रहें


आखिर क्यूं

समझ नहीं लेते

मायके वाले वो बेटी के साथ साथ साथ

एक इंसान है

वो संस्कारों के पिंजरे में

घुट घुट कर रहती


फिर बांध दी जाती एक अनचाहे खूंटे से

उसके पैरों मैं सुहाग के बांध कर पायल

वो देखती रहती दरवाजे पर

और सोचती रहती

कि चेहरे पर आज तो मुस्कुराहट होगी पति के

जैसे ही घर के अंदर घुसे वैसे ही

सास और ननद दिन भर के अपने 

सच्चे झूठे किस्से सुना कर

मायके से क्या ले कर आई

ऐसी बातें रचा कर

और पति से मार खिला कर 

अपने अंह की संतुष्टि कर लेती


मां बाप के घर

वहां भाभियां मां का जीना दूभर कर देंगी

भाई भी भाभियों की हां में हां मिलायेंगे

वो बेटी फिर मायके नहीं जाती


क्या पाती हैं बेटियां बहू बनकर

छोड देना चाहिए घर

अजनबी बन कर


दामाद पालने चाहिए या

बेटियों की बलि चढा देनी चाहिए

शादी और सौदे मैं फर्क तो करना ही चाहिए


जो चाहते हैं बेटियां खुश रहैं

बहू बन कर

दहेज दे देते हैं मां बाप दिल खोल कर

सुरसा जैसा मुख

ससुराल वालों का

खुलता जाता

बेटी का जीवन उस विषमें झुलस जाता


अब सब जगह ऐसा भी नहीं है

रिश्ते करते नहीं भूखे नंगे

हल पर बैल नहीं जोतते बूढे कंगे

बेटे जो कल तक रहते अपने

पल मैं बन जाते घर दामाद

मां बाप की बसाई 

गृहस्थी चंद दिनों में बर्बाद


जिस घर में मां बाप करते आवाभगत

बेटे को लगती बडी है आफत

बीबी के हिस्से का झाडू लगाना

बच्चों को नहलाना

आइने मैं भाई का खुद को निहारना

नबाबों सा जिया करता था जो

आइना झूठ नहीं बोलता


आखिर आज सब भाग रहे

घर से

रिश्तों से

खुद से

जिम्मेदारियों से।



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