प्रतिबिंब
प्रतिबिंब
शायद ना मैं तुम्हारे
अनुरूप मां
पर तुम्हारा ही रूप हूं ।
माना अभी बिखरी बिखरी रहती हूं
पर संवरना सीख रही हूं
माना हर कदम पर लड़खड़ाती हूं
पर संभालना सीख रही हूं
देख देख तुम्हे रोज़
मैं भी बदलना सीख रही हूं ।
तुम शिक्षिका रही
काफी पाठ पढ़ाएं है
मत भयभीत हो मां
संस्कार सभी तुमने मुझे भी सिखाए हैं
बचपन में तुमहरी चुन्नी से साड़ी पहनती थी
आज तुम साड़ी पहना रही हो
अनबन इस सफर में हुई हमारी
पर मनबन कभी नही
इस सफर में स्वाद
हमारा विवाद लाया है
कितने रूष्ट हो हम कभी
अंत में दोनो ने दोनो को मनाया है
मुस्कुराहट की भी तुम सहेली
आश्रुओं की भी साथी हो
भूल खुद का अस्तित्व
कैसे मुझमें खुद को पाती हो
तुम क्यों डरती हो
मैं दुनिया से कैसे जीत पाऊंगी
मानो तो तुम हो सकता है मैं
एकांकी रहूंगी पर कभी भी
अकेली नहीं
तुम में दुख सताता है
तुम्हारे संग के बिना मैं खाना भी न खा पाऊंगी
मैं भी सोचती हूं बनाने से खिलाने का प्यार मैं कहां ढूंढ पाऊंगी
पर डरो मत मां
मैं रास्ता खोज लूंगी
जो देखती आई हूं तुम्हे खाना पकाते
कुछ कुछ तो सीख चुकी हूं
खुशबू और स्वादों में तुम्हारी परछाई में गढ़ित कर चुकी हूं
व्यंजन विधि सारी तुम्हारी मेरी स्मृतियों में चिन्हित होंगी
चुटकी से चम्मच तक सभी मात्राएं मेरे दिल में होंगी
डर है तुम्हारा की अस्थ - व्यस्तता मेरी
बड़ी मुश्किलें लाएगी
पर मत डरो मां डांट भी तुम्हारी मेरे कानो में गुनगुनाएगी
जब एक एक कदम ही पीछे तुम ना रहोगी
तो रोते चिल्लाते मैं भी सुगढ़ता सीख जाऊंगी
फिर तुम्हारे ही तरह मैं भी सफाई में सुकून पाऊंगी
तुम सोचती हो मैं तो लोगों से खुल ना पाती हूं
संकोच के कारण पीछे छूट जाती हूं
पर इसलिए क्योंकि आज तुम मेरी आवाज हो
मेरे ख्याल जान लेती हो
हिचकिचाती हूं जब मैं
तुम बात संभाल लेती हो
पर कला यह भी तुमसे ही सिकूंगी
हाव भाव की सभी त्रुटियां तुमसे पूछूंगी
यों तो मां मुझे अभी तुम बच्ची मानती हो
पर कितने विचार तुम मेरे बारे में जानती हो
तुम कहती हो मैं बहुत बहादुर हूं
आंखों में आसूं भी न लाती
भूल जाति हो तुम ही तो हो वो जो मुझे संभालती
कहती हो तुम शब्दों को पिरोना जानती हो
मेरे हर पुरुस्कार पे लाड प्यार लुटती हो
पर अपनी प्रतिभा क्यों जग छुपाती हो
तुम से चालू हुआ था सिलसिला किसी को क्यों न बताती हो
जो खड़ी हूं इस मुकाम में बढ़ने उड़न
तुम ने ही चलना सिखाया था,
मेरे मन को तुम ने हो जान
दिल को भी तुमने पहचाना था
उंगली थामे मेरी तुम कंधे तक ले आई हो
खुद को को तुम मुझे में फिर रागिनी पाई हो
डर छोड़ दो मां
अपने पर विश्वास रखो
डगमगाऊ कितनी भी भी
स्थिर हो जाऊंगी
तुम्हारी हिम्मत मैं अपने अंदर पाऊंगी
जो दुनिया तुम न देख पाईं
तुम्हारी दृष्टि से मैं देख पाऊंगी
हमारा ही तो सबसे पुराना रिश्ता है
और यह तुम्हारी हर समझ में दिखता है
दोनो के दिल में सबसे बड़ा रिश्ता दूसरे का है
तुम्हे लगता है मालू तुम्हारी तुमसे अलग हो जायेगी
पर जहां मां है वहीं मालू भी मिल जाएगी
माना अभी तुम्हे उम्मीद नहीं मालू मुझ जैसी होगी
पर आत्म से मनसा कितनी हो दूर होगी।
मेरे सर में तुम्हारे संस्कारों का हाथ है
और तुम्हारे प्रतिबिंब का मुझको साथ
फसलों से बाध्य नहीं हमारा नाता अनमोल है
मेरी हर बात के पीछे है हमारे रिश्ते की सौ सौगात।