जख्म दिल के
जख्म दिल के
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जख्म दिल का हौले हौले उभर गया
उफ्फ दर्द तो ये सीने में ही घर कर गया
काटे कटते नही अब शामो सहर
वो जुदा क्या हुए वक्त भी ठहर गया
साफ़ नज़र आए उदासी की लकीरें
चेहरे से मेरे अब सारा नूर उतर गया
हिज्र में आंसू बहाते हुए भी अब तो
खुशी का वो एक लम्हा गुज़र गया
बीती बात का अब अफसोस कैसा
क्या हुआ टूटा दिल था बिखर गया
कौन क्यूं किसके बारे में सोचें यहां
जिसके दिल में जो आया कर गया
यादों की राख बची सिर्फ जेहन में
मै उसके लिए वो मेरे लिए मर गया।