कन्यादान नहीं करूंगा !
कन्यादान नहीं करूंगा !
पिता :- कन्यादान नहीं करूंगा
जाओ !
मैं नहीं मानता इसे
क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं
जिसको दान में दे दूँ ;
मैं बांधता हूँ बेटी
तुम्हें एक पवित्र बंधन में
पति के साथ मिलकर निभाना तुम !
मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रहा
आज से तुम्हारे दो घर
जब जी चाहे आना तुम
जहाँ जा रही हो
खूब प्यार बरसाना तुम !
सब को अपना बनाना तुम
पर कभी भी
न मर - मर के जीना
न जी - जी के मरना तुम !
तुम अन्नपूर्णा, शक्ति, रति
सब तुम !
ज़िंदगी को भरपूर जीना तुम !
न तुम बेचारी
न अबला,
खुद को असहाय
कभी न समझना तुम !
मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें
मोहब्बत के एक और बंधन में
बाँध रहा हूँ
उसे बखूबी निभाना तुम...!