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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

जिंदगी का खेल

जिंदगी का खेल

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हमारी इस जिंदगी का भी अजीब सा खेल है।

हमारे अपने ही निकालते अपनों का तेल है।।

जो जितना दूर रहता है, विश्वास की बेल से।

वो उतना दूर रहता है, दगाबाजी की जेल से।।


जिंदगी में सफलता की साखी, बस यही रेल है।

कभी किसी को न बताओ, तुम अपना भेद है।।

जो खुद पर विश्वास करता, होता कभी न फेल है।

छोड़े पराया सहारा लेना, आप खुद ही मिशेल है।।


आप खुद ही मित्र, गर स्वयं पर यकीन वेल है।

गर न यकीं खुद पर, आप स्वयं ही शत्रु गुलेल है।।

वह लोह भी बनकर चमकता कुंदन की बेल है।

जिसके भीतर नही होता तनिक भी कोई मेल है।।


गर खुश रहना है, न रहना कभी दुःख जेल है।

तू बालाजी, स्वयं सिवा न रख किसीसे मेल है।।

इस ज़माने में हर तरफ ही स्वार्थ की मुठभेड़ है।

अपना खूं, खूं प्यासा होता, जब बात आती मेढ़ है।।


हमारी इस जिंदगी का भी अजीब सा खेल है।

हमारे अपने ही अपनों का निकालते तेल है।।

छोड़ो अपना-पराया करना, सब व्यर्थ की रेल है।

गर पैसा पास तो बूढ़ापा लगेगा जवानी खेल है।।


मेहनत करो, पैसा कमाओ, इससे हर रिश्ता वेल है।

पैसा न हो पास, अपने वस्त्र भीतर अपनी जेल है।।


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