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Rita Chauhan

Classics Drama

5.0  

Rita Chauhan

Classics Drama

कितने अमीर कितने गरीब

कितने अमीर कितने गरीब

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कितना अच्छा था न वो समय

सब मिलकर रहते थे।


वो सुबह जल्दी उठना,

घर मे खूब चहल पहल रहना।


वो चूल्हे से निकलता धुँआ

वो चिड़ियों का चहचहाना।


कौन पहले नहाएगा, उसके लिए

बच्चों का लड़ना-झगड़ना।


फिर चूल्हे पे रोटी सेकती

दादी माँ के चारों ओर

पंक्ति में बैठ जाना।


एक दूसरे से ज़्यादा

खाने की होड़ में,

ढेरों रोटियाँ खा जाना।


फिर बैलगाड़ी में बैठ, रास्ते में

सबसे हाल चाल लेते खेतों में जाना।


वो खेतों में सबका कड़ी मेहनत

पसीना बहाना।


फिर थक हार के

घर वापिस आना।


घरों से निकलता धुआँ,

वो बैलों के गलों में

घंटियों का बजना।


वो गोधूलि बेला में ,

सबसे राम राम कहते चलना।


वो चिड़ियों का वापिस

घरौंदों में लौटना।


वो माँ का प्रतीक्षा में

दरवाज़े पर खड़ा होना।


सबका एक साथ भोजन करना,

जल्दी बिस्तर लगा लेना,


फिर घंटो बातें करना।

कभी दादी, कभी बुआ

तो कभी माँ के साथ सोना।


वो बिना तनाव के

शांति का जीवन जीना।


कभी टकरार होती तो

कुछ ही देर में एक दूसरे को

हँस कर मना लेना

और फिर से एक हो जाना।


किसी के बीमार हो जाने पर

पूरे परिवार का उसी की

देखभाल में लगना,

वो उसी की पसंद के

भोजन का बनना।


वो दीवाली पर शेर, बिल्ली,

भालू के चीनी के खिलौनों पर

बच्चों का अधिकार जमाना।


वो बच्चों का मिल बाँट कर

मिठाई खाना।

वो अपने आप संस्कारों का

बोध हो जाना।

बड़ों का आदर, छोटों से प्यार

मात्र एक दूसरे को देख कर सीख जाना।


सच कितना अच्छा था न

वो समय, सब मिलकर रहते थे।


संतोष था, शांति थी, प्रेम था,

बड़ों के लिए आदर था,

छोटों के लिए प्रेम।


आज हम कितने धनवान हो गए हैं,

प्यार थोड़ा कम है तो क्या

तकरार है यहां।


एक दूसरे का साथ थोड़ा

कम ही सही पर

एक दूसरे को पछाड़ने की

होड़ है यहाँ।


संतोष थोड़ा कम हुआ तो क्या

असंतोष है यहाँ।


चैन की नींद से अमीरों

का लेना देना ही क्या


हजारों दोस्त है फेसबुक पर

अपनों से दूरी यहाँ है मगर।


सच बहुत दूर निकल आए हम,

सच कितने अमीर हो गए हम या

'कितने गरीब'?? ।।


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