दान धर्म
दान धर्म
संगम, कितना सुन्दर आज धरा पर
दान-धर्म और भ्रष्टाचार
एक हाथ से काला धन है लेते
फिर मुख से करते धर्म-कर्म की बात।।
पीठ के पीछे छुरा घोंपते
दुहाई भी देते मिलकर साथ
चंदा रूप जनता से दान है लेते
फोटो खिचाते जैसे बड़े महान।।
दूसरे की तरक्की बर्दाश्त न होती
सोचे, उसकी बरबादी के उपाय लाख हजार
मुँह के मीठे इतने होते
उनसे भला न दूसरा यार।।
धर्म के नाम पर दंगे भड़काकर
दया-करुणा का देते ज्ञान
लाश गिरे न जब तक दो चार की
कहाँ मिलता है उन्हें आराम।।
खाते-पीते साथ घूमते
रखते, मुँह में राम-रहीम साथ कटार
भाई-भाई का खून बहा
अपनी भलाई का करते बड़ा बखान।।