"लालच"
"लालच"
जो भी मनुष्य करता है, लालच
वो सदा जिंदगीभर रहता है, नच
यही है, हमारी जिंदगी का सच
लालच व्यक्ति को करता है, नत
जो लोभ को समझता है, जरूरत
वो व्यक्ति स्वर्ण पिंजरे का खग
लालच की कभी न लगना, लत
यह मनुष्य को बना देता है, अज
ओर-ओर लोभ में भूलता है, पथ
मंजिल पर होकर भी टूटता है, रथ
हंसती हुई जिंदगी का होता है, वध
लालच जीते जी ले जाता है, नरक
जो हद से ज्यादा करता है, लालच
वो मनु कभी न हो सकता है, सुखद
गर इस जिंदगी को बनाना है, उन्नत
जिंदगी में कभी लालच करना मत
जो लालच रूपी शत्रु से जाता, बच
वही कर एकता, परोपकार की जद
उन पत्थरों से निकल जाती है, नद
जिन पत्थरों में समाई, संतोष, रज
वो व्यक्ति जीते जी, पहुंचता है, जन्नत
जो भीतर रखता, संतोष धन हरवक्त
उसके लिए मिट्टी जैसे है, यह दौलत
जो दैनिक जरूरते पूरी करती है, बस।
