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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Classics Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Classics Inspirational

अपनी करनी

अपनी करनी

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किसी को अब भला, यहां हम क्या कहे

अपनों के सितम हद से ही ज्यादा सहे

अब तो करेला भी मीठा लगता है, हमे

करेले से ज्यादा, जो कटु अनुभव सहे


जिन अपनों के लिये, हम बहुत रोते रहे

वो हमारे अक्षुओं पर, बहुत मुस्कुराते रहे

जीवन आईने, के तब सहस्त्र टुकड़े हुए

जब फूल भी उन पर पत्थर बनकर गिरे


किसी के भरोसे, आप कभी भी न रहे

यहां आग से ज्यादा, जल जलजले रहे

वही जिंदगी में, सूर्य बनकर चमकते रहे

जो स्वयं भीतर, दीप बनकर जलते रहे


वही जुगनू, घने अंधकार से लड़ते रहे

जो सच के लिए, रोशनी से नित भरे रहे

वही पत्थर मील के पत्थर साबित हुए

जिन राहों के पत्थरों पर रोज, चलते रहे


इसलिए कभी किसी को शर्मिंदा न करे

सबके दिन कभी यहां पर एक जैसे न रहे

जो व्यक्ति अपनी धुन में जिंदगी जीते रहे

उनके लिए, आग ओर पानी एक जैसे रहे


हो सके तो कभी किसी के सहारे न चले

अपनी करनी से ही, कीचड़ में कमल खिले।


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