ए आइना बता, क्यूं तू खामोश है?
ए आइना बता, क्यूं तू खामोश है?
ए आइना बता, क्यूं तू खामोश है ?
अपनी कहानी सुना दे उठा कर।
तेरे आँचल में क्या बात छिपी है,
जो शब्दों में नहीं, तू बयान कर।
हर लफ़्ज़ तेरा मगर, छुपा है धीमे,
या फिर शब्दों के पर्दे से जुदा है ?
क्या तेरी आवाज़ धुन से अलग है,
जो ख़ामोशी की चादर में सोया है ?
ए आइना बता, क्यूं तू खामोश है ?
हर रात ये सबाल दिल में उठता है।
ये कैसी ख़ामोशी है, ये कैसी बेरुख़ी है,
ज़िन्दगी के रास्ते पर गुमसुम ये छवि है।
दिलों की आहटें बुनी जज़्बातों की कहानी,
पर इस ख़ामोशी में बसती है उदासी की ज़बानी।
सब कुछ कहना चाहते हैं ये अधूरे लफ़्ज़,
पर बेरुख़ी की चादर में छिपी है तन्हाई की कहानी
ए आइना बता, क्यूं तू खामोश है ?
तेरी आवाज़ से गया हर गीत याद है।
तेरे आँगन में छुपी है खुशबू एहसास की,
जुबान की जदूगरी से हर रूह बहकी है।
तेरी आंखों की चमक खो गई है कहाँ,
ज़रूरी तो नहीं हर ख़्वाब सच हो जाएँ।
दरियाँ के लहरों में छुपी है तेरी आहट,
सबसे कह रही है तू ज़िंदगी का राज़ है।
ए आइना बता, क्यूं तू खामोश है ?.......