विरासत
विरासत
कौन कहता है आप चले गए ?
आज भी बसे हो गायत्री चालीसा के शब्दों में,
क्योंकि सुबह की पहली प्रार्थना
आपने ही तो सिखाई थी !
कौन कहता है आप चले गए ?
आज भी बसे हो शीशम के पेड़ की छाँव में,
क्योंकि वो आज भी वहीं है
जहाँ कहानिया सुनी थी आपसे !
कौन कहता है आप चले गए ?
आज भी बसे हो सावन के पहले अभिषेक में,
क्योंकि आपसे ही सीखा था
ईश्वर को पूजना !
कौन कहता है आप चले गए ?
आज भी बसे हो सिंहस्थ के मेलों में,
जहाँ घूमे थे आपके कन्धों पर बैठ के !
कौन कहता है आप चले गए ?
आज भी बसे हो बारिश की फुहारों में,
क्योंकि आपसे ही सीखा था
दादी से छुपकर बारिश में
भीगने का आनंद लेना !
कौन कहता है आप चले गए ?
आज भी बसे हो संक्रांत के गिल्ली-डंडों में,
जो आप अपने हाथों से बनाते थे मेरे लिए !
कौन कहता है आप चले गए ?
आज भी बसे हो सर्दियों की धुप में,
खारक के दूध में,
जो आप अपने हाथों से पिलाया करते थे !
कौन कहता है आप चले गए ?
आज भी बसे हो कार्तिक पूनम के दीयों में,
जो हम नदी में बहाया करते थे !
कौन कहता है आप चले गए ?
आज भी बसे हो शिवरात्रि की भांग में
जो थोड़ी से हमको भी पिलाया करते थे !
आज भी बसे हो,
दादी के नखरों में,
घर के सूने गलियारों में,
जहाँ चलते-फिरते रहते थे !
आज भी बसे हो,
स्मृतियों की उस अविभक्त विरासत में
जो आपसे मिली है,
क्योंकि कुछ चीज़ों का
कभी बँटवारा नहीं होता !