सुनो मेरे देव वृक्ष!
सुनो मेरे देव वृक्ष!
सुनो मेरे देव वृक्ष! बहुत प्यारे हो तुम मुझे।
केवल वृक्ष नहीं, गौरव हो मेरे 'निर्मल -कुंज' का ।
तुम्हारे सुंदर पुष्प, केवल पुष्प नहीं,प्रमाण है
तुम्हारी कृतज्ञता और प्रेम के,
जो बिछ जाते हैं घर के बरामदे में,
स्नेह की रंगोली बन के।
तुम मेरी हर सुबह का प्रथम और सुंदरतम दृश्य हो।
उदित होता सूर्य और तुम पर पड़ती उसकी तेजस किरणें।
और तुम्हारी छांव में रखे सकोरे में अठखेलियां करती पक्षियों की टोली ।
तुम्हारी हरी-भरी काया पर,बसे हैं कई नीड़।
और महक रही है मेरी गृहस्थी भी,
तुम्हारी सुंगंधित छाँव तले।
मैं प्रेम-नीर से सींचती रहूंगी तुम्हे सदा,
तुम मेरे जीवन को यूँ ही महकाते रहना।
सुनो मेरे कल्पवृक्ष !बहुत प्यारे हो तुम मुझे।