मुझ को नारी ही रहने दो।
मुझ को नारी ही रहने दो।
मत दो उपमाएँ देवी की
ना गहनों से श्रृंगार करो,
मैं ईश्वर की अनुपम रचना
मुझ पर इतना उपकार करो।
गंगा सी पावन हूँ मैं
मुझ को अविरल सा बहने दो,
मैं ईश्वर की अनुपम रचना
मुझको नारी ही रहने दो।
बेटी बनकर मुझको बाबुल के
आंगन में मुस्काने दो,
ममता की प्रति मूर्ति बनकर
मुझको वात्सल्य लुटाने दो,
मत रोको बढ़ने से मुझको
उद्गार हृदय के कहने दो
मैं ईश्वर की अनुपम रचना
मुझको नारी ही रहने दो।
बाबुल की फुलवारी मुझसे,
आँगन में किलकारी मुझसे।
फुलवारी और किलकारी के,
बीच बसा अस्तित्व मेरा।
वात्सल्य मेरा, कारुण्य मेरा,
लावण्य मेरा, स्त्रीत्व मेरा।
मेरे निज अस्तित्व को भी,
बनकर के इत्र महकने दो,
मैं ईश्वर की अनुपम रचना,
मुझको नारी ही रहने दो।