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Pinkey Tiwari

Tragedy

4  

Pinkey Tiwari

Tragedy

सूने मकान

सूने मकान

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बड़े-बड़े घर के, रोशनदान हो गए हैं,

घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं।


गलीचे हैं, खिलोने हैं, करीने से सजे हुए,

घर में रहने वाले भी अब मेहमान हो गए हैं

घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं।


न सलवटें हैं बिस्तर पर, न बिछी कोई चटाई है,

न रामायण-गीता पढ़ता कोई, न लगी कोई चारपाई है,

बाहर से बुलवाये माली ही, अब बगिया के बाग़बान हो गए हैं,

घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं।


न आती है कोई चिट्ठी अब, न बचा है दौर "बुलावों" का,

बहन-बेटियां हो गईं दूर, दर्शन भी दुर्लभ उनके पावों का,

हंसी-ठिठोली, गपशप करना, अब केवल अरमान हो गए हैं,

घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं।


बड़ी-बड़ी हैं टेबलें, आसन पर कोई नहीं बैठता,

खाने से पहले अब, भगवान् को कोई नहीं पूछता,

किसी को नमक हैं कम खाना, किसी को शक्कर की बीमारी है,

भोजन ऐसे करते हैं, जैसे कोई लाचारी है,

इसीलिये तो फीके सब, पकवान हो गए हैं,

घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं।


महंगी, सुन्दर, टिक-टिक करती, घड़ी है सजी दीवारों पर,

रंग भी, रोशनी भी, फबती खूब त्योहारों पर,

लेकिन वक़्त हो गया "महँगा", और हम ?

घडी देखने वाले दरबान हो गए हैं,

घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं।


घर में कैद हैं, छीपम-छिपाई,

गिल्ली-डंडा, घोडा-बादाम-छाई,

और सूने अब खेल के मैदान हो गए हैं,

घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं।


और अंत में

"अतिथि -देवो-भव:" लिखते-लिखते,

अब हम "कुत्तों से सावधान" हो गए हैं,

अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं।


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