बचपन के दिन कितने अलग हुआ करते
बचपन के दिन कितने अलग हुआ करते
वो समय भी क्या था जब बचपन के दिन कितने अलग हुआ करते थे
वो बचपन भी कितना अलग था जब हम उस बचपन को जिया करते थे
मोबाइल फोन की दुनिया से दूर दोस्तों के साथ घंटो बातें किया करते थे
वो छुपना छिपना रस्सी से कूदना पिट्टू गिराने के खेल खेला करते थे
रात को सोने से पहले दादी से किस्से कहानियाँ सुन कर सोया करते थे
परीक्षा के समय दही खाकर बड़ों का आशीर्वाद लेकरस्कूल जाया करते थे
स्कूल में पढ़ते समय कई कई बार अपने गुरु का चित्र भी बनाया करते थे
वो समय भी क्या था जब बचपन के दिन कितने अलग हुआ करते थे
स्कूल के बाहर चूरन खट्टी इमली और काली पीली टाफी खाया करते थे
वो काँच के गिलास से बर्फ़ के गोले बनवाकर बड़े चाव से खाया करते थे
छुट्टी के बाद तेज बारिश जब आती फिर खूब भींग के घर जाया करते थे
घर के आगे बहते पानी में कागज़ की नाव बनाकर चलाया करते थे
फिर बारिश में झूमना मिट्टी से खेलना इसी में मस्त रहा करते थे
टी.वी न होने पर रामायण देखने हम दूसरों के घर भाग जाया करते थे
रविवार का चित्रहार चंद्रकांता और जंगल बुक दिल को भाया करते थे
वो समय भी क्या था जब बचपन के दिन कितने अलग हुआ करते थे
मम्मी की साड़ी चूड़ी बिंदी लगाकर शीशे में खुद को घंटो निहारा करते थे
बत्ती जाने पर मोमबत्ती जपरछाइयों से आकृतियाँ बनाया करते थे
साँप सीढ़ी का खेल वो लूडो और कैरम जो सबके साथ खेला करते थे
कई बार दोस्तों से खेल खेल में कट्टी और फिर अब्बा किया करते थे
वो बचपन भी क्या था चाकलेट की जगह गुड़ की पट्टी खाया करते थे
वो समय भी क्या था जब बचपन के दिन कितने अलग हुआ करते थे।