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Professor Santosh Chahar

Inspirational

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Professor Santosh Chahar

Inspirational

गुह्वर

गुह्वर

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वेदना

के,अंतर्नाद से गूंजते स्वर

तुम्हारे दिल की दहलीज़ पर सर पटकते रहे

लेकिन,

तुम नहीं पिघले

तुम्हें पिघलना आता ही नहीं

पुरुष दंभ,

तुम्हें निष्ठुर बनाता है।

यहीं, तुम भूल करते हो

जानते हो?

स्त्री,

स्व को पिघला कर,

तुम पर

सब कुछ न्यौछावर करती है,

लेकिन

तुम नहीं जानते शायद,

जब स्त्री, खुद को गुह्वर में समेट लेती है

तब तुम, उसे खो चुके होते हो

उसके, अंतस की गुह्वर,

उस अभेद्य दुर्ग की भांति होती है

जिसमें परिंदा भी पर नहीं मार सकता,

युवावस्था के बाद

बुढ़ापे के पहले सोपान पर ही

तुम, स्त्री के

स्नेह रुपी वृक्ष की छांव ढूंढते हो

संधि का पैगाम भेजा जाता है,

लेकिन

तुम्हारे हठी दूतों को,

दुर्ग के, चौकस पहरेदार

चेतावनी देकर लौटा देते हैं,

तुम्हारा दंभ,

उम्र भर

अपने खंडित टुकड़े बीनता रहता है।




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