इतिहास
इतिहास
मैं इतना जानती हूं,
कि तुम स्मृति का वह धागा हो
जिसे, मैं खामोशी की सुई में पिरो
ज़ख्मों की पैहरन सिलती हूं ,
हर रात,
धागे की लम्बाई बढ़ी हुई मिलती है
कभी कभी, सुई इस कदर चुभ जाती है
कि, धागा, मेरे वजूद से लिपट जाता है
जैसे ,वृक्षों से लिपट जाती हैं बेलें
विपत्तियों के ककून में उलझी, मैं तितली सी मैं
पंखों को आकार देने का अथक प्रयास करती हूं।
स्मृति का अपना इतिहास होता है।