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AMAN SINHA

Action Inspirational

4  

AMAN SINHA

Action Inspirational

ये धर्म युद्ध है

ये धर्म युद्ध है

2 mins
594


हे अर्जुन गांडीव उठाओ, शत्रु का संहार करो

धर्म युद्ध में पर अपर का, ना कोई विचार करो

रण भूमि में युद्ध करना ही, क्षत्रिय का मात्र कर्म है

अपने कर्म से मुख मोड़े तो, शास्त्र में यह होता अधर्म है

 

और फिर ये तो धर्म युद्ध है, इसके पालन को तू प्रतिबद्ध है

तो क्या, स्वयं पितामह आए? शत्रु वध ही तेरा कर्म है

वीर कभी भी रण भूमि में, भाव विभोर नहीं हो सकता है

क्षत्रिय अपने लक्षित पथ से, कभी भ्रमित नहीं हो सकता है

 

मोह भंग ना हो पाए तो, चौसर के छल को याद करो

क्या रही भूमिका इनकी, उसका भी तुम ध्यान धरो

ये मत भूलो उन पाषाणों में, ये पुतला भी खड़ा रहा

राज धर्म की चादर ओढ़े, मूक बधिर दर्शक बना रहा

 

कहाँ थी इनकी करुणा उस दिन, जब कुलवधू का अपमान हुआ

भरी सभा में उस नारी का, चीर हरण, भंग मान हुआ

तुम ना समझो पितामह इसको, जिन्होंने तुमको पाला है

ये है तेरे कुटुंब का दोषी, इसके कर्म में विष का प्याला है

 

देखो ये वही गुरु द्रोण है, जिसने विद्या तुमको सौंपी थी

कभी ना अपने धर्म से भटको, तुमसे ये शपथ ली थी

कहो की मन में संशय है क्या? कैसा ये अँधियारा है

कृष्ण तुम्हारे साथ खड़ा है, सदैव सखा तुम्हारा है


याद करो तुम कैसे सबने, उस वीर पुत्र को घेरा था

सात तह थे, एक लक्ष्य था, बरछी भालों से मारा था

ये वही है भद्र पुरुष जो, तर्क शास्त्र की देते है

लेकिन निहत्थे बालक को, ये एक शस्त्र ना देते है


ये कैसी थी नीति उनकी, जिसमें युद्ध नीति का नाम नहीं

ग्यारह योद्धा एक को मारे, ये वीरों का काम नहीं

तुम भी अब मोह को तज कर, इन सबका संहार करो

काल के मुख में डाल कर इनको, इन सबका विचार करो


देखो कर्ण सम्मुख खड़ा है, तुमको है ललकार रहा

अपने बाण धनुष से देखो, कैसे तुमको साध रहा

ठहरो तनिक ना धैर्य गवाओ, चिंता छोड़ो चिंतन अपनाओ

इसको अगर परास्त है करना, तो इसको है निरथ करना

 

है इसको अभिशाप तुम मानो, धरती का इसपर कर्ज है जानो

जब शत्रु से घिर जायेगा, ये अपनी विद्या गवाएगा

पहला बाण बेसुध हो खा लो, फिर निशाना पहिये पर डालो

जो धँसा पहिया उठाएगा, खुद नि:सहाय हो जाएगा

 

लेकिन जो तुम पथ से भटके, बाण तुम्हारे धनुष में अटके

तू फिर कायर कहलाएगा, तू फिर कायर कहलाएगा

तू भी फिर परलोक में जाकर, ये दाग धो ना पाएगा

अपने कुल की शाख मिटायेगा, ये बोझ उठा ना पायेगा

 

अंत सभी का आना है एक दिन, कोई जीवित ना रहता चिर दिन

जिसने जैसा आरंभ किया है, निश्चित है वैसा अंत ही पाएगा

एक दिन ऐसा भी आयेगा, तू निरुत्तर हो जायेगा

जो आज क्षत्रिय धर्म ना निभायेगा, तो मोक्ष कहाँ तू पायेगा? 


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