क्रोध जब आता है!
क्रोध जब आता है!
जब मनुष्य को क्रोध आता है,
कुछ भी समझ नहीं आता है,
बुद्धि सो जाती है,
विवेक मर जाता है...
हर ओर केवल नाश नजर आता है...
जब क्रोध आता है!
उस समय कुछ समझ नहीं आता है!
क्रोधी! पहले खुद जलता है,
फिर,
दूसरों को जलाता है...
इस आग में बहुत कुछ जल जाता है,
क्रोध जब आता है!
आगे क्या होगा?
सोच नहीं पाता है,
हानि होगी या लाभ?
कुछ समझ नहीं आता है!
जो भी सही राह दिखाता है...
क्रोध उसी पर निकल जाता है...
क्रोध जब आता है...
मस्तिष्क शून्य हो जाता है,
भावनाओं में उबाल आ जाता है,
कभी यह क्रोध अच्छे के लिए,
तो कभी बुरे के लिए आता है,
जो हम सोचते हैं,
वही दिखाया जाता है,
क्या सही है क्या ग़लत?
सब भ्रष्ट हो जाता है...
क्रोध जब आता है..
आत्मबल को मिटा देता है,
शरीर को कंपा देता है,
हृदय पाषाण हो जाता है,
मस्तिष्क से लावा बाहर आता है...
भ्रम ही भ्रम दिखाई आता है,
हर ओर शत्रु जान पड़ता है,
और क्रोधी उस पर टूट पड़ता है!
क्रोध जब आता है!
समय पर क्रोध नियंत्रित कर ले जो,
विजयी हो जाता है,
जो इसमें असमर्थ हैं,
पीछे पछताता है।
क्यों किया?
क्यों न किया?
सोचता रह जाता है...
क्रोध जब आता है!
माथा ठंडा पड़ जाता है,
क्रोध शांत हो जाता है,
मन सोच में पड़ जाता है,
और क्रोध!
दोबारा आ जाता है...
पर बहुत कुछ मिट जाता है!
क्रोध जब भी आता है...
कुछ न कुछ मिटाकर ही जाता है।
