सुखद अंतराल
सुखद अंतराल
नाउम्मीदी के चक्रव्यूह में
अपनों की हठात हठ से
बंद होते प्रीत के पट का साक्षी,
प्रतिपक्षी यह संघर्षी
उम्मीद की मशाल से रोशन
बुझती किरणों के अंश समेटता
घेरे बैठे,चौकड़ी जमाये,
ये स्याह-श्याम मेघों के झुरमुट में
कलूटे काक ईर्षाग्रस्त,यह मिथ्या-मध्यस्थ,
काले सायों के बिछाये उलझाए जालों में
सिमटता ये श्याम -प्रिय निर्मल अंतस्थ
गगनचुम्बी विकराल रियासत में टकराता
यह मदमस्त समुन्दर सा संवेग,
ये आवेग के प्रचारक,
सियासत की बिछाये बिसात
ये तम के आराधक,यह राज्य अराजक
दुःख के बाजार में मुस्कान की दुकान पर
बिकते सादगी के पकवान . मानो
ज़मीन पर हर्षित बिछोना,यह
नादान बालक,मासूम मुख पर लिए आनंद का खिलौना
मरुधरा का सुहाना सेहरा पहने, यह
रेगिस्तान की उजाड़ आंधी का धूमिल गुबार ओढ़े,
धृष्टता की तपन से धधकते,
दहन के अंगारों की लपट पर दौड़ता
ये निर्भीकता का अनुयायी प्रचंड,
धूर्तता की तपिश पर सेंध लगाने,
धुंधली धूमिल अँखियों में
हौसले और शौर्य का विश्वास श्वासों में भरकर
मरुधरा पर रमे रमणी-उद्यान में
अपनी वीरता और जीवटता की सुगंध से
तरुण पुष्पावल्ली की मनोहरता में
बुनियाद की स्थिरता के चार चाँद लगाने,
ख्वाबों के क्षितिज में मरीचिका के प्याले से अपनी तृष्णा बुझाने
छल कपट पर पटल,यह अटल
त्याग मखमल,क़ुर्बानी की राह पर चल पड़ा हैं
यह अंत नहीं अंतराल हैदुखद कथा नहीं सुखद गाथा है
पाताल की पराकाष्ठा की परछाइयाँ नहीं,
सागरमाथा की गहराइयों में निहित
निष्ठा और ढृढ़ता की ऊँचाइयाँ है।