वो मेरी प्रेरणा मेरी मां
वो मेरी प्रेरणा मेरी मां
मेरी ज़िंदगी है वो
मेरे एहसासों की माला है वो
कोई और नहीं बस मेरी मां है वो
ज़िंदगी को मैदान बताया
कर्मों को तमगा समझाया
जीत के लिए खुद को दिखलाया
कसौटियों से लड़कर हर पल
ज़िंदगी की खूबसूरत तस्वीर चमकाई
बीते पलों की तस्वीर पर धूल नहीं ठहरने दी
किस दर्द में लिपटी रही रहें
ये बात वो समझा देती
जितनी भी मुश्किल रहें मुस्कुराना नहीं भूलने देती
मेरी ज़िंदगी कहूं या ताक़त
वो बुलन्द हौसले सी मेरे साथ ही रहती
नए दौर में नई सोच कहलाती
शेर सी दहाड़ है उनकी
चीते सी चाल देखी
चील सी नज़र रखकर ज़िंदगी को मात देती
मन के विचलन को रोक कर
खुद के हौसले बुलंद समझाती
मिट्टी में रहकर मिट्टी को सोना बनाती
धूप में वो छांव तो बारिश में छत बन जाती
आग सी तपिश में वो शबनम के मोती बन जाती
आंधी और तूफान में भी वो अपनी मुस्कुराहट नहीं खोने देती
नई सोच से ज़िंदगी को हर वक्त महकती
नए राहें भी उनकी सखी बन जाती
अंधेरों में वो उजालों की महारानी कहलाती
शेर की दहाड़ भी जिनके हौसलों के आगे फीकी पड़ जाती
तूफानों में अपनी जड़ों से परिवार को थामे
मीलों के सफर में खुद को थामे
सादगी में लिपट कर किसी हीरे के जैसे
हर पल मेरी ज़िंदगी को रोशन किया
मेरी प्रेरणा ही नहीं मेरी मां है वो।
