धूल फांककर जो बड़ा हुआ है
धूल फांककर जो बड़ा हुआ है
सड़कों की धूल फांककर जो बड़ा हुआ है
मंज़िल की अंतिम पायदान पर वही खड़ा हुआ है
मेहनत की आग में तपकर जो सोना बना है
दर दर की ठोकरें खाकर कामयाबी की मिशाल बना है
वह कभी गिरेगा नहीं, कभी मरेगा नहीं
भेड़ियों के काफिले में जो हर पल अकेला है
जीवन की राहों में हर क़दम उलझनों का मेला है
फौलादी बाहें फैलाकर जो पल-पल आगे बढ़ा है
दुर्गम चोटियों को फतेह करके वही हिमालय पर चढ़ा है
वह कभी डरेगा नहीं, कभी मरेगा नहीं
रणभूमि में जिसके धनुष की गूंजी टंकार है
जीवन के रण कौशल का फनकार है
ठोकर खाए पत्थरों से जिसने भाग्य को तराशा है
चट्टानों को काटकर ही लक्ष्य का मार्ग तलाशा है
वह कभी झुकेगा नहीं, कभी मरेगा नहीं
जीवन के रथ का सारथी बनकर कर्मपथ पर जो चला है
आज दिनकर उसकी तक़दीर बनकर खिला है
नागों के फ़न कुचलकर लक्ष्य को जिसने पाया है
काल का भी काल बनकर वही कर्मयोगी कहलाया है
भोर की केसरिया किरणों का तिलक
माथे पर सजाकर जिसने दुश्मन को ललकारा है
अंततः विजेता भी वही हुआ है
संपूर्ण जगत में होती उसकी जय जयकारा है
वह कभी गिरेगा नहीं, कभी मरेगा नहीं।
