मुखौटा गंभीरता का
मुखौटा गंभीरता का
होता है कोई चेहरे से गंभीर पर मन से अल्हड़
तो किसी के चेहरे पर झलकता है बचपन
पर गंभीर होता है मन
लेकिन कोई भी इंसान एक तरह का कभी नहीं होता
बदलती है उसके संजीदगियां किया हालातों के साथ
जब आती है कांधे पर जिम्मेदारियां
तो सारी मस्तियां चुरा लेती हैं
ओढ़ा देती हैं तन और मन पे पैहरन गंभीरता की
फिर कोई चुटकुला भी बमुश्किल ही हंसा पाता है
मुखौटा गंभीरता वाला
इस कदर हावी हो जाता है चेहरे पर
चाह कर भी नहीं उतारा जाता है
गंभीर रहना बुरी बात नहीं पर
मुश्किल तो यह है कि
इंसान भूलने लगा है कि कैसे मुस्कुराया जाता है।
