छत वो बचपन वाली
छत वो बचपन वाली
1 min
111
बचपन में जब कट कर
किसी दूसरे की छत पर पहुंच जाती थी पतंग हमारी
तो हम लाने को उसको किसी का दरवाज़ा नहीं खटखटाते थे
लगाते थे एक छत से दूसरी..दूसरी से तीसरी छत पर छलांग
और अपनी पतंग हम ले आते थे
उन दिनों बराबर सी ही होती थी सबकी दीवारें लगभग
और पूरा मौहल्ला एक परिवार जैसा ही होता था
इजाजत नहीं लेनी पड़ती थी किसी की
छत पर से ही छलांग लगाकर
एक दूसरे के घर के अंदर पहुंच जाते थे
अब परिवार ही परिवार नहीं...किसी की छत बराबर नहीं
सब के दरवाजे हो चुके हैं बंद...
कोई करता किसी के मन में तांक झांक नहीं।
