हाय रे मेरी पदोन्नति
हाय रे मेरी पदोन्नति
कभी पदोन्नति लगती थी एक वरदान,
जो बढ़ाती थी मेरी शान मिटा के थकान।
लाल से सफेद हुआ हैं मेरा अभी खून,
सेवानिवृत्ति के समय चाहिए सिर्फ सुकून।
प्रशिक्षण के बाद कार्यालय ने किया अनुयोजन,
मिला मुझे पदोन्नति पर दुर्गम स्थानांतरण।
सेवाकाल में देख चुका था अनेक ठिकाने,
दोस्तों ने कहा क्यों नहीं मांगते यही अवधारण।
सलाह-मशवरा करके तैयार किया था आवेदन,
बेरुखी प्रशासन ने खारिज किया मेरा अवधारण।
आदेश मिला “चले जाओ” अपने गंतव्य स्थान,
दिखी नहीं कोई डगर, ना कोई मिला मार्गदर्शन।
सोच-समझकर मैंने छेड़ा था लघु अभियान,
ताकी पदोन्नति पर मुझे मिले प्रतिधारण।
कार्यालय ने किया था मेरे वेतन का समापन,
पहिले से ज्यादा कठोर हुआ मुझपर प्रशासन।
फिर मैं भी जुट गया करने कार्य साधन,
मन, मस्तिष्क और मित्रों का मिला समर्थन।
सोच समझकर प्रयासों में फूंक रहा था जान,
लेकिन घर की माली हालत कर थी मुझे परेशान।
लंबी अर्जित छुट्टियाँ और आर्थिक जकड़न,
परिवार को कर रहा था हर पल हलकान।
बच्चों के पढ़ाई में पड़ रहा था गहरा व्यवधान,
उनकी परेशानियों से परिवार हो रहा था बेचैन।
धीरज का फल मिठा, सफल हुआ मेरा निर्धारण,
छ्ह माह की कठोर श्रम से फिर मिला प्रतिधारण।
ठान लिया इसके बाद पदोन्नति नहीं करूंगा ग्रहण,
क्योंकि बज रही प्रतीक्षित सेवानिवृत्ति सुनहरी धुन।
