जीवन का बोझ
जीवन का बोझ
कैसा-कैसा जग में देखो
जीवन का खेल होता है
कोई सुख में जीवन जीता है
जर्जर जीवन ढोता है
मजलूमों का हक छीनकर
उन्हें रुलाकर वो हंसता है
हंसकर दुख का जहर जो पीता
उसका जीवन रोता है
सुखमय जीवन जीकर यारों
जीना भी कोई जीना है
कांटों पे चलना और उफ़ ना करना
सच पूछो तो यही जीना है
दौलत और शोहरत वाले तो
सुख की छांव में पलते हैं
और मेहनतकश इंसानों की जां
सड़कों पर ही पलते हैं
जग के कथित रहनुमाओं की
उंगलियां घी में रहती हैं पर
मिट्टी में मेहनत करने वालों की
रोटी पर भी आफत रहती है
छल और स्वार्थ परस्त लोगों की
खूब यहां पर बनती है
लेकिन सच्चे इंसानों की
नहीं पूछ यहां पर होती है
इसमें दोष नहीं किसी का
दोष हम सबका होता है
दूषित सामाजिकता के कारण
कोई जीवन का बोझ ढोता है
कैसा-कैसा जग में देखो
जीवन का खेल होता है
कोई सुख में जीवन जीता है
कोई जर्जर जीवन ढोता है।
